श्री धाम वृन्दावन जाने वाले भक्त एक बार श्री बांके बिहारी मंदिर जरूर जाते हैं। यह भव्य मंदिर भगवान कृष्ण को समर्पित है और इसमें श्री बांके बिहारी लाल जी की “त्रिभंग मुद्रा” में खड़ी एक सुंदर मूर्ति है। माना जाता है कि भक्तों को बिहारी जी की मूर्ति से नजरें नहीं मिलानी चाहिए। बिहारी जी के मंदिर में भक्तों को कुछ मिनट के लिए ही दर्शन करवाए जाते हैं और फिर पुजारी पर्दा कर देते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि यह प्रथा क्यों प्रचलित है? आइए जानते हैं इसके बारे में …
क्यों नहीं मिलानी चाहिए कुंज बिहारी से नजरें?
श्री बांके बिहारी लाल जी को मूल रूप से “कुंज बिहारी” के नाम से जाना जाता था। एक किंवदंती है कि बांके बिहारी मंदिर में पूजा करने के लिए एक बार राजस्थान की एक राजकुमारी आई थी। मगर, जैसे ही राजकुमारी की नजर बिहारी जी की तेजस्वी पूर्ण-काली मूर्ति पर पड़ी, वह उनके प्रेम में पागल हो गई। उसने ध्यानमग्न होकर भगवान को देखा और उसके साथ वृन्दावन में अनंत काल बिताने की इच्छा की।
हालांकि, ऐसा संभव नहीं हो सका। राजकुमारी को महल में ले जाया गया क्योंकि उस पर राज्य का दायित्व था। राजकुमारी वृन्दावन में कृष्ण के साथ रहना चाहती थी और लगातार उनके बारे में सोचती रहती थी। फिर एक दिन पुजारी ने जब मंदिर ने देखा तो मूर्ति गायब हो गई थी।
बहुत ढूंढने के बाद मूर्ति राजस्थानी राजकुमारी के महल में मिली। माना जाता है कि बिहारी जी अपनी भक्त की भक्ति से प्रभावित होकर उससे मिलने के लिए अपना मंदिर छोड़ गए थे। इसके बाद पुजारी ने बिहारी जी की मूर्ति को वापिस उसी स्थान पर स्थापित कर दिया गया। तब से बिहारी जी और उनके भक्तों के बीच पर्दा लगाने की परंपरा बन गई।
श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर अन्य किंवदंतियां
-ब्रजवासियों के अनुसार, अगर कोई भक्त पूरी तरह से भक्ति में लीन हो जाता है और उनकी आंखों में देख लेता है तो भगवान भक्त की मनोकामना पूरी करने के लिए कुछ भी कर देते हैं।
– ऐसा माना जाता है कि जब कोई भक्त बांके बिहारी की आंखों में देखता है और रोने लगता है तो श्री बांके बिहारी उस भक्त के साथ घर तक जाते हैं और मंदिर छोड़ देते हैं।