

नवरात्रि और दुर्गा पूजा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के आखिरी यानि नौवें दिन को महानवमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मां दुर्गा के भक्त मां सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। इस दिन देवी शकी ने महिषासुर का वध किया था। माना जाता है कि वह अपने भक्तों का अज्ञान दूर कर उन्हें ज्ञान प्रदान करती हैं।
कौन हैं मां सिद्धिदात्री?
मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान और सिंह पर सवार हैं। उनकी चार भुजाएं हैं- उनके दाहिने हाथ में गदा और सुदर्शन चक्र है। उनके बाएं हाथ में कमल और शंख है। वह गंधर्वों, यक्षों, सिद्धों और असुरों से घिरी हुई है, जो उसकी पूजा करते हैं।
भगवान शिव भी करते हैं उपासना
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब ब्रह्मांड की शुरुआत हुई तो भगवान रुद्र ने शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पराशक्ति की पूजा की। चूंकि उनका कोई रूप नहीं था इसलिए आदि-पराशक्ति भगवान शिव के आधे बाएं भाग से देवी सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं। जब ऐसा हुआ तो भगवान शिव को अर्ध-नारीश्वर के रूप में जाना जाने लगा।
महानवमी का महत्व
सिद्धिदात्री मां दुर्गा का नौवां रूप हैं, जो हमें शक्ति देती हैं। महानवमी के दिन भक्त उनकी पूजा करते हैं। वह उन्हें सभी प्रकार की सिद्धियां भी प्रदान करती हैं। भगवान शिव को भी देवी सिद्धिदात्री की कृपा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त हुईं।
मां सिद्धिदात्री मंत्र, प्रार्थना और स्तुति
1) ॐ देवी सिद्धिदात्र्यै नमः
2) सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैरसुरैरैरपि
सेव्यमना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी
3) या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः