Sunday, July 27, 2025
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19 मई को रखा जाएगा वट सावित्री व्रत, जानें लें पूजा सामग्री और विधि

जालंधर (TE): हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का भी खास महत्व है। मान्यता है कि इसे रखने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसका महत्व करवा चौथ के व्रत जितना ही माना गया है। इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की विधिवत पूजा करती है।

धार्मिक मान्यताओं अनुसार, इस दिन सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की जान यमराज से वापस ली थी। उसी दिन से महिलाएं सावित्री के समान अपने पति की लंबी उम्र की कामना हेतु इस व्रत को रखती है। ऐसे में अगर आप यह व्रत पहली बार रखने वाली हैं तो आज हम आपके लिए इससे जुड़ी सारी जानकारी लेकर आए हैं। चलिए जानते हैं वृट सावित्री व्रत के बारे में…

वट सावित्री व्रत पूजा मुहूर्त

इस व्रत को हर साल ज्येष्ठ मास की अमावस्था तिथि पर रखा जाता है।

पूजा मुहूर्त

वट सावित्री व्रत आरंभ 18 मई 2023, दिन गुरुवार, रात 09.42 मिनट से
वट सावित्री व्रत समापन 19 मई 2023, दिन शुक्रवार, रात 09.22 मिनट पर

उदय तिथि 19 मई होने से ये व्रत इसी दिन रखा जाएगा।

पूजा का शुभ मुहूर्त

19 मई 2023, सुबह 07.19 मिनट से सुबह 10.42 मिनट तक

वट सावित्री व्रत का महत्व

धार्मिक मान्यताओं अनुसार, इस व्रत को रखने व विधिवत पूजा करके से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।

वट सावित्री व्रत की पूजा सामग्री

इसके लिए आपको सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, बांस का पंखा, कच्चा सूत, लाल रंग का कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक, फल, फूल, बतासा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, घर से बनी पुड़िया, भीगा हुआ चना, मिठाई, घर में बना हुआ व्यंजन, जल से भरा हुआ कलश, मूंगफली के दाने, मखाने आदि की जरूरत होगी।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

. इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं सुबह नहाकर लाल .या पीले रंग के कपड़े पहनें।
. इसके बाद सोलह श्रृंगार करके तैयार हो।
. फिर व्रत का संकल्प लेकर पूजा का सारा सामना एक बड़ी थाली में तैयार करें।
. इसके बाद सारी सामग्री लेकर बरगद के पेड़ नीचे रखें।
. पेड़ पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें।
. पेड़ की जड़ में जल, फूल, अक्षत, गुड़, मिठाई, भीगा चना आदि चढ़ाएं।
. इसके बाद पेड़ पर सूत लपेटते हुए 7 परिक्रमा लें।
. आखिरी में वटवृक्ष को प्रणाम करके परिक्रमा पूरी करें।
. इसके बाद वहीं हाथ में चने लेकर बैठकर पूजा करें और कथा सुनें।
. पूजा समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों को फल, वस्त्र व दक्षिणा दें।
. अगले दिन 11 भीगे चने खाकर व्रत का पारण करें।

 

 

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