

हिंदू धर्म में माता वरलक्ष्मी व्रत का बहुत महत्व है, जो हर सावन माह में शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाई जाती है। यह व्रत ज्यादातर कर्नाटक और तमिलनाडु की महिलाएं संतान का सुख व संतान प्राप्ति के लिए रखती हैं। मान्यता है कि यह व्रत रखने से धन, वैभव, समृद्धि, सुख-संपत्ति के साथ घर-आंगन में जल्दी ही बच्चे की किलकारियां गूंजने लगती हैं।
वहीं, यह व्रत रखने से सुहागिन महिलाओं को सौभाग्य अखण्ड का वरदान मिलता है। पति-पत्नी के एक साथ यह व्रत रखने पर दोगुना फल प्राप्त होता है। मान्यता है कि वरलक्ष्मी व्रत से अष्टलक्ष्मी पूजन जितना पुण्य प्राप्त होता है। चलिए आपको बताते हैं इस व्रत से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें…
वरलक्ष्मी व्रत की पूजन विधि:
– सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। फिर घर की पश्चिम दिशा में चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर केसर वाला चन्दन से अष्टदल बनाएं।
– फिर इसके ऊपर उस पर चावल रखकर जल वाला कलश स्थापित कर दें। कलश के पास हल्दी से कमल बनाकर माता लक्ष्मी की मूर्ति प्रतिष्ठित करें और मूर्ति के सामने श्रीयंत्र भी रखें।
– कमल के फूल से माता का पूजन करें और फिर मां को सोने-चांदी के सिक्के, फल-फूल, मिठाई आदि अपनी इच्छानुसार अर्पित करें।
– माता लक्ष्मी के आठ रूपों की निम्न मंत्र के साथ पूजा करें।
वैभव लक्ष्मी मंत्र:
या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी। या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी। सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती ॥
वैभव लक्ष्मी व्रत के नियम
– व्रत का पारण मां लक्ष्मी की प्रसाद में चढ़ाई खीर से करें।
– इस दिन खट्टी चीजों का सेवन वर्जित माना जाता है। इसके अलावा मांस, नशीली वस्तुओं से भी दूरी बनाकर रखें।
– क्रोध, ईर्ष्या, जलन, वैमनस्य, नफरत और बेईमानी जैसे भावों से दूर रहना अति आवश्यक है।
– माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए गरीबों को कपड़े, भोजन आदि का दान करें।
– अपने से बड़ों का सम्मान करें और खासकर इस दिन किसी का भी अपमान ना करें।
– घर के दरवाजे से किसी को खाली ना जाने दें।