

वैदिक ज्योतिष में शनि देव को कर्म फल दाता और न्याय का देवता माना जाता है। शनि अपने गोचर या नक्षत्र परिवर्तन के दौरान सभी राशियों को प्रभावित करते हैं। लोगों को चुनौतियों से जूझने के बाद शनिदेव सकारात्मक परिणाम भी देते हैं। शनि की मित्र राशियों में शुक्र और बुध के साथ राहु और केतु भी शामिल हैं। ज्योतिष शास्त्र में राहु और शनि को समान फल प्रदान करने वाला माना जाता है।
शनि देव एक राशि में ढ़ाई साल गोचर करते हैं। साल 2022 में शनि के कुम्भ राशि में गोचर किया था और अब वह कुम्भ राशि में गोचर करेंगे। बता दें कि इस गोचर से मकर राशि के ऊपर शनि की साढ़ेसाती की दशा खत्म हो जाएगी जबकि मीन राशि के ऊपर शनि की साढ़ेसाती का पहला फेज चल रहा है।
2024 में मेष राशि पर शुरू होगी शनि की साढ़ेसाती
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए मेष राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती शुरू होने वाली है, जिसके कारण उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि अगर शनिदेव केंद्र या त्रिकोण के स्वामी होंगे तो शुभ मिलेंगे जबकि अष्टम या बारहवें भाव में आने पर शनिदेव अशुभ फल देते हैं। शनि मेष राशि के लिए दसवें और ग्यारहवें भावों के स्वामी होते हैं। ग्यारहवें भाव को अशुभ भाव कहा जाता है।
मेष राशि का स्वामी मंगल है, जो आपस में शत्रु भाव रखते हैं। मेष राशि के जातकों को शनिदेव वैसे भी ज्यादा बढ़िया फल नहीं देते। इसके अलावा सिंह और धनु राशि पर भी शनिदेव की कृपा दृष्टि नहीं रहती।
जब शनिदेव बारहवें भाव बैठेंगे तो दूसरे भाव को प्रभावित करेंगे। इससे तीसरी दृष्टि दूसरे भाव के ऊपर जाएगी, जिससे धन लाभ होगा। वहीं अगर एक दृष्टि छठे भाव के ऊपर जाएगी तो भाग्य का साथ कम मिलेगा और धन हानि भी देखने को मिल सकती है। संतान को कष्ट देखने को मिल सकता है। वैसे तो शनि गोचर शुभ है लेकिन अश्विनी नक्षत्र में पैदा हुए जातकों को इससे नुकसान हो सकता है।