

नई दिल्ली (Exclusive): सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने आज यह स्पष्ट कर दिया कि जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था।
बता दें कि आर्टिकल 370 के तहद जम्मू और कश्मीर के पूर्व राज्य को विशेष दर्जा दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डाई चंद्रचुद, जस्टिस गवई और सूर्य कांत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान था और सिर्फ राष्ट्रपति ही इसे रद्द कर सकते है।
CJI चंद्रचुद ने फैसले को पढ़ते हुए कहा कि उद्घोषणा के तहत एक राज्य की ओर से केंद्र द्वारा उठाए गए प्रत्येक निर्णय को कानूनी चुनौती के अधीन नहीं किया जा सकता है। अदालत ने कहा, ‘जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह राज्य कोई आंतरिक संप्रभुता नहीं है।’ याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य में अपरिवर्तनीय परिणामों की कार्रवाई नहीं कर सकती है लेकिन यह स्वीकार्य नहीं है।
CJI ने आगे उल्लेख किया कि 25 नवंबर, 1949 को “युवराज करण सिंह” द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य के लिए एक उद्घोषणा जारी की गई थी। अदालत ने कहा, “राष्ट्रपति द्वारा जारी घोषणा में अनुच्छेद 370 की शक्ति और खंड 3 का अभ्यास किया गया है। एकीकरण की प्रक्रिया की एक परिणति है। इस प्रकार, हम यह नहीं पाते हैं कि अनुच्छेद 370 के क्लॉज 3 के तहत राष्ट्रपति की सत्ता का अभ्यास मालाफाइड था । हम मान्य होने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति का अभ्यास करते हैं। “
अदालत ने यह भी नोट किया कि अनुच्छेद 370 संघ के साथ जम्मू और कश्मीर के संवैधानिक एकीकरण के लिए था और यह विघटन के लिए नहीं था। राष्ट्रपति यह घोषणा कर सकते हैं कि अनुच्छेद 370 अस्तित्व में रहना बंद कर सकता है। राज्य सरकार की सहमति को अनुच्छेद 370 (1) (डी) का उपयोग करके संविधान के सभी प्रावधानों को लागू करने की आवश्यकता नहीं थी। इसलिए, भारत के राष्ट्रपति ने केंद्र सरकार की सहमति ले ली थी।