

कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव का प्रतीक है। यह त्यौहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस त्यौहार को गोकुलाष्टमी, श्रीकृष्ण जयंती, कृष्णाष्टमी और कृष्ण जन्माष्टमी जैसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस साल यह त्योहार 6 और 7 सितंबर को मनाया जाएगा। इस शुभ दिन पर लोग उपवास रखते हैं और प्रार्थना के लिए बैठते हैं। लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के आठवें स्वरूप थे। इस दिन लोग 24 घंटे का व्रत रखते हैं और घर पर बने भोग से अपना व्रत खोलते हैं।
इसके अलावा हर साल कृष्ण जन्माष्टमी पर दही हांडी का उत्सव मनाया जाता है। यह त्यौहार मुख्य रूप से गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों में मनाया जाता है। इसमें मिट्टी के बर्तन में दही या मक्खन भरकर ऊंचाई पर लटका दिया जाता है, जिसे पुरुषों का समूह तोड़ने की कोशिश करता है और महिलाएं उन्हें रोकती है।
दही-हांडी का महत्व
दही हांडी का महत्व भगवान कृष्ण की कथा पर आधारित है। उन्हें मक्खन चोर या माखन चोर के नाम से भी जाना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि बचपन में श्री कृष्ण बहुत शरारती थे और उन्हें मक्खन बहुत पसंद था। इसलिए वह अपने दोस्तों के साथ उनके पड़ोसियों से मक्खन चुराकर खाते थे। उनके कारण लोग अपने मिट्टी के बर्तन ऊंचे लटका देते थे ताकि कृष्ण वहां तक न पहुंच सकें, लेकिन वह फिर भी सारा मक्खन चुरा लेते थे।
क्यों मना जाता है दही-हांडी का उत्सव?
सालों से, दही हांडी कृष्ण जन्माष्टमी की एक रस्म बन गई है। इस दौरान लड़कों के समूह हांडी तोड़ने की कोशिश करता है। यह त्योहार मनाने का एक मजेदार तरीका बन गया है। पिरामिड बनाने वाले लोगों को ‘गोविंदा पाठक’ या ‘गोविंदा’ कहा जाता है।
हांडी को जमीन से लगभग 30 फीट या 40 फीट की ऊंचाई पर रखा जाता है। विभिन्न टीमें सबसे ऊंचा पिरामिड बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा करती हैं।
‘दही हांडी’ में क्या होता है?
गुजरात और द्वारका जैसी जगहों पर, मिट्टी का बर्तन कृष्ण की पसंदीदा वस्तुओं से भरा होता है, जैसे दही, बादाम, घी और मेवे। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोग इस त्योहार को उत्लोत्सवम के रूप में मनाते हैं। इसका आयोजन प्रसिद्ध तिरूपति वेंकटेश्वर मंदिर में किया जाता है, और यह जन्माष्टमी के एक दिन बाद मनाया जाता है।
श्री कृष्ण स्वामी और श्री मलयप्पा स्वामी के विग्रहों को मंदिर के चारों ओर एक जुलूस के रूप में मंदिर के ठीक सामने वाले स्थान पर ले जाया जाता है, जहां उत्लोत्सवम आयोजित किया जाता है। देवता स्थानीय युवाओं द्वारा खेले जा रहे खेल को देखते हैं जिन्हें उत्ति को हथियाने के लिए समूहों में विभाजित किया जाएगा।