

हिंदू धर्म में हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। दिवाली के अगले दिन लोग गोवर्धन की पूजा करते हैं। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है। हालांकि इस साल ऐसा नहीं हुआ। जानें इसका क्या कारण है।
दरअसल, दिवाली के दूसरे दिन यानि 13 नवंबर को दोपहर दो बजकर 57 मिनट तक अमावस्या थी। वहीं अगले दिन भी उदय तिथि अमावसा होने से गोर्वधन पूजा नहीं होगी। इस कारण पूजा 14 नवंबर को की जाएगी, जिसका शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 35 मिनट से सुबह आठ बजे तक रहेगा।
गोवर्धन पूजा कथा
शास्त्रों में इस दिन वरूण, इंद्र, अग्निदेव आदि देवताओं की पूजा का विधान है। एक बार देवराज इंद्र ने कुपित होकर सात दिन की वर्षा की अखंड झड़ी लगा दी थी, लेकिन श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाकर ब्रज को बचा लिया था। इसके बाद इंद्र को क्षमायाचना करनी पड़ी थी।
इस दिन विधि-विधान के साथ गोवर्धन की पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है। भगवान श्री कृष्ण का अधिक से अधिक ध्यान करें। इस दिन भगवान को 56 भोग लगाने की परंपरा भी है।
पूजा की विधि
-इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर में झाड़ू लगाएं। इससे दरिद्रता दूर होती है।
-इसके बाद बाहर से आपको थाली बजाते-बजाते घर में प्रवेश करना है।
-फिर स्नानादि कर गोबर या मिट्टी लेकर घर के मुख्य द्वार के चौखट पर छोटा पर्वत और पाल बनाकर उनकी पूजा-अर्चना करें।
-केसर-कुंकुम का तिलक करें, अक्षत चढ़ाएं, पुष्प चढ़ाए व नैवेद्य स्वरूप कोई भी प्रसाद भोग लगाएं।