

जालंधर(Exclusive) आज देवशयनी एकादशी (devshayani ekadashi) है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को समर्पित होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। एकादशी के दिन व्रत नियमों का पालन करने के साथ ही व्रत कथा का भी विशेष महत्व होता है।
मान्यता है कि देवशयनी एकादशी का पाठ करने या सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान श्रीहरि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। देवशयनी एकादशी व्रत कथा का वर्णन खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने इस वृतांत को धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाया था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा राज्य करते थे। मांधाता के राज्य में प्रजा सुखी थी। एक बार उनके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं होने की वजह से भयंकर अकाल पड़ा गया था। अकाल से चारों ओर त्रासदी का माहौल बन गया था। इस वजह से यज्ञ, हवन, पिंडदान, कथा-व्रत आदि कम होने लगे थे। प्रजा ने अपने राजा के पास जाकर अपने दर्द के बारे में बताया। राजा इस अकाल से चिंतित थे।
उन्हें लगता था कि उनसे आखिर ऐसा कौन सा पाप हो गया, जिसकी सजा इतने कठोर रुप में मिल रहा था। इस संकट से मुक्ति पाने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए। जंगल में विचरण करते हुए एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे गए। ऋषिवर ने राजा का कुशलक्षेम और जंगल में आने कारण पूछा।
राजा ने हाथ जोड़कर कहा कि मैं पूरी निष्ठा से धर्म का पालन करता हूं, फिर भी में राज्य की ऐसी हालत क्यों है? कृपया इसका समाधान करें। राजा की बात सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा कि यह सतयुग है। इस युग में छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। महर्षि अंगिरा ने राजा मांधाता को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। महर्षि ने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से अवश्य ही वर्षा होगी।
महर्षि अंगिरा के निर्देश के बाद राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए। उन्होंने चारों वर्णों सहित पद्मा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया, जिसके बाद राज्य में मूसलधार वर्षा हुई। ब्रह्म वैवर्त पुराण में देवशयनी एकादशी के विशेष महत्व का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि देवशयनी एकादशी के व्रत से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।