

नई दिल्ली(Exclusive) टोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics)2020 का जिक्र जब भी होगा, भारत (India) के ‘गोल्डन ब्वॉय’ (‘Golden Boy’) नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। टोक्यो ओलंपिक में भारत का आखिरी इवेंट जैवलिन थ्रो (Javelin Throw) ही था और नीरज पर सभी की निगाहें टिकी हुई थीं।
नीरज के गोल्ड मेडल से पहले भारत के खाते में छह मेडल आ चुके थे । नीरज से गोल्ड की उम्मीद पूरा देश लगाए बैठा था और उन्होंने निराश भी नहीं किया और भारत की झोली में गोल्ड मेडल डालकर सभी देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया।
नीरज ऐसे ही गोल्डन ब्वॉय नहीं बने, इसके पीछे संघर्ष की एक लंबी कहानी है। गोल्ड मेडल जीत करोड़ों रुपये का ईनाम पाने वाले नीरज के पास एक समय 1.5 लाख रुपये का जैवलिन खरीदने का भी पैसा नहीं था, ना ही कोच रखने का।
उन्होंने इन कमियों को अपनी मेहनत के अलावा परिवार की स्पोर्ट के चलते पूरा किया और ओलंपिक खेलों में भारत को एथलेटिक्स पहला गोल्ड मेडल दिलाया, इतना ही नहीं इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने वाले नीरज महज दूसरे भारतीय हैं, इससे पहले 2008 में शूटिंग में अभिनव बिंद्रा ने इंडिविजुअल गोल्ड मेडल अपने नाम किया था।
हरियाणा में पानीपत के गांव खंडरा के रहने वाले नीरज ने ओलंपिक के इतिहास में एथलेक्टिस में देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाने के बाद यह मेडल स्वर्गीय महान धावक मिल्खा सिंह को समर्पित किया।
नीरज ने कहा कि मिल्खा सिंह की चाहत थी कि स्टेडियम में भारत का नेशनल एंथम बजे और उनका सपना आज साकार हो गया है। बता दें कि दिग्गज मिल्खा सिंह का जून 2021 में निधन हो गया था। वह कोरोना से संक्रमित हो गए थे। 1960 के ओलंपिक खेलों में वह मेडल लाने से चूक गए थे और चौथे स्थान पर रहे थे।