

हिंदू कैलेंडर के अश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन छोटी दिवाली मनाई जाती है, जो इस बार 11 नवंबर यानि कल है। छोटी दिवाली को नर्क चतुर्दर्शी के नाम से भी जाना जाती है। इस दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण, श्री हनुमान, मृत्यु के देवता यमराज और माता काली की पूजा करते हैं। वहीं, इस दिन लोग शरीर पर तिल का तेल भी लगाते हैं।
छोटी दिवाली को क्यों कहा जाता है नरक चतुर्दशी?
पूर्व और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में छोटी दिवाली पर कुछ जगहों में नरकासुर का पुतला भी जलाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस नरकासुर ने वैदिक देवी अदिति के प्रदेशों पर कब्जा करने के बाद कई महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार भी किया। उसके बाद भगवान कृष्ण और सत्यभामा ने उसे एक युद्ध में मार डाला।
कैसे शुरू हुई दीपदान की परंपरा?
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, नरकासुर को स्त्री के हाथों मृत्यु का वरदान प्राप्त था। जब उसने 16 हजार कन्याओं को बंदी बना लिया तब भगवान श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को सारथी बनाकर नरकासुर का वध किया। तब सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण से कहा कि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा इसलिए श्रीकृष्ण ने सभी कन्याओं से विवाह किया। इसी उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी के दिन दीपदान की परंपरा भी शुरू की गई।
इसलिए चौखट पर जलाया जाता है दीपक
छोटी दिवाली अमावस्या के अगले दिन होती है, जिसके स्वामी यमराज हैं। कहा जाता है कि अमवस्या पर चांद ना निकलने के कारण यमराज कहीं भटक ना जाए इसलिए चौखट पर दीया जलाना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर 14 दीए जलाकर रखने चाहिए।