Monday, June 16, 2025
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करवाचौथ पर महिलाएं क्यों देखती हैं छलनी से चांद? यहां पढ़िए पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में वैसे तो हर त्योहार का अपना अलग महत्व होता है, लेकिन करवा चौथ बेहद खास है। विवाहित महिलाएं करवा चौथ के उत्सव का बेसब्री से इंतजार करती हैं, जो हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को आता है। यह एक ऐसा दिन है जब महिलाएं व्रत रखती हैं और अपने पति की सलामती के लिए आशीर्वाद मांगती हैं।

इस साल यह 1 नवंबर को मनाया जाएगा। महिलाएं मां करवा की पूजा करती हैं और आशीर्वाद लेती हैं। इस दिन चंद्रमा को छलनी से देखने की विशेष परंपरा है लेकिन क्या आप जानते हैं कि छलनी से चांद क्यों देखा जाता है। चलिए आपको बताते हैं…

महिलाएं क्यों देखती हैं छलनी से चांद?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, चंद्रमा को ब्रह्मा का रूप कहा जाता, जो सुंदरता, सहनशीलता और प्रेम का प्रतीक है। ऐसे में जब महिलाएं छलनी से चांद देखने के बाद अपने पति को देखती हैं तो उनमें भी वह गुण आ जाते हैं।

माता पार्वती की कथा
इसके अलावा धार्मिक ग्रंथों में करवा चौथ के दौरान भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा का भी उल्लेख मिलता है। इस शुभ दिन पर, भक्त माता पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय को श्रद्धांजलि देते हैं। रात में, वे छलनी से चंद्रमा को देखने के बाद उसे जल चढ़ाते हैं, जो जीवन की अपूर्णताओं से मुक्ति का प्रतीक है।

करवाचौथ से जुड़ी कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भद्रा नाम की एक महिला नदी के पास रहती थी। एक दिन जब उसका पति नदी में नहा रहा था तो उसे एक मगरमच्छ ने खींच लिया था। उस भयानक क्षण में, करवा ने अपने पति की सुरक्षा के लिए मृत्यु के देवता यमराज से बहुत प्रार्थना की। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर यमराज ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो भी महिला इस दिन उनके नाम पर व्रत रखेगी, उसके पति को लंबे जीवन और समृद्धि का आशीर्वाद मिलेगा।

सात बहनों की इकलौती बहन की कहानी
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, करवा चौथ के साथ कई पौराणिक कहानियां जुड़ी हुई हैं। करवा चौथ की एक और कहानी सात भाइयों की प्यारी बहन वीरवती की है। अपनी शादी के बाद वीरवती ने अन्य विवाहित महिलाओं की तरह, करवा चौथ का व्रत रखा। ऐसे ही एक करवा चौथ पर, उसके भाई उसे सुबह से देर रात तक उपवास करते हुए नहीं देख सके। ऐसे में उन्होंने वीरावती को झूठी सूचना दी कि चंद्रमा निकल आया है और उससे अपना व्रत तोड़ने का आग्रह किया।

अपने भाइयों पर भरोसा करते हुए, वीरवती ने अपना उपवास तोड़ दिया लेकिन उसके कुछ ही समय बाद उसके पति की मृत्यु हो गई। निराश और दुखी होकर, उसने भगवान से अपने पति को वापस जीवन देने की प्रार्थना की। भगवान ने उसे अगले वर्ष पूरी ईमानदारी और भक्ति के साथ उसका व्रत रखने की आज्ञा दी। वीरवती ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का निश्चय करके पूरे एक वर्ष तक धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा की। इस बार उन्होंने छलनी से चंद्रमा की पूजा की और तभी उन्होंने कहा कि उन्हें इसमें अपने पति का चेहरा दिखाई दे रहा है। वीरवती ने व्रत के प्रति अपनी अटूट निष्ठा की बदौलत अपने पति को फिर से जीवित कर लिया।

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