नई दिल्लीः लगातार बढ़ती महंगाई का असर सीधा आम आदमी की जेब पर हो रहा है। जुलाई महीने में महंगाई पिछले 15 महीने के टॉप पर पहुंच गई है। आकंड़ो के मुताबिक, जुलाई के लिए CPI मुद्रास्फीति दर अर्थशास्त्रियों के कीमतों में अपेक्षित 6.6% वृद्धि के अनुमान से काफी ऊपर थी।
जारी आंकड़ों के अनुसार, खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति में 11.51% की वृद्धि के कारण जुलाई में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 7.44% के 15 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। आरबीआई के 4-6% के आराम बैंड से ऊपर की वृद्धि मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में सब्जियों, विशेष रूप से टमाटर और अनाज की कीमतों में तेज वृद्धि के कारण हुई।
जुलाई में शहरी महंगाई दर बढ़कर 7.20% पर पहुंच गई, जो जून में 4.96% थी। वहीं, ग्रामीण महंगाई दर भी बढ़कर 7.63% पर आ गई, जो जून में 4.72% थी। हालांकि, हाउसिंग और फ्यूल एंड लाइट की महंगाई में गिरावट आई है। हाउसिंग महंगाई जुलाई में 4.47% रही जबकि फ्यूल-लाइट की महंगाई 3.67% पर रही।
CPI क्या होता है?
कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी CPI का काम रिटेल मार्केट से जुड़ी कीमतों में हुए बदलाव को देखना होता है। CPI सामान और सर्विसेज के लिए जो औसत मूल्य चुकाते हैं, उसे मापता है। इनमें कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मेन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा 300 सामान शामिल है। महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है यानि अगर महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा।
RBI कैसे कंट्रोल करती है महंगाई?
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट बढ़ाता है। महंगाई कम करने के लिए बाजार में पैसों के बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। जैसे RBI ने अप्रैल, जून और जुलाई में रेपो रेट नहीं बढ़ाया था लेकिन इससे पहले रेपो रेट में लगातार 6 बार बढ़ा था। RBI ने महंगाई के अनुमान में भी कटौती की थी।
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड व सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर किसी चीज की डिमांड बढ़ेगी और उसके मुताबिक सप्लाई ना होने पर कीमत बढ़ेगी। इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाएगा।