

नई दिल्ली (TES): साइबर अपराधों से जुड़े मामलों की जांच कर रहे अधिकारियों का कहना है कि आधार कार्ड पर अपना पता आसानी से बदलने की प्रक्रिया के कारण सबसे बड़ी साइबर धोखाधड़ी की वजह है। बता दें, आधार कार्ड धारक भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) से कई तरीकों के जरिए अपने घर का एड्रेस चेंज करवा सकते हैं।
पता बदलना का एक तरीका ये भी
बता दें, आधार कार्ड को जारी करने का काम यूआईडीएआई द्वारा किया जाता है। इसके एक तरीके मुताबिक, व्यक्ति यूआईजीएआई की वेबसाइट में जाकर अपना पता बदलने का प्रमाण पत्र आसानी से डाउनलोड कर सकता है। इसे अलग-अलग अधिकारियों जैसे- सांसद, विधायक, पार्षद, समूह ‘ और समूह B के राजपत्रित अधिकारी व एमबीबीएस डॉक्टर से हस्ताक्षर कराकर ही अपलोड किया जा सकता है। वहीं इस पर साइबर अपराध के कई मामलों की जांच हुई है। इसकी जांच करने वाले अधिकारियों का कहना है कि जालसाजों ने आधार डेटाबेस में अपने व्यक्तिगत विवरण को अद्यतन करने के लिए रबर स्टैंप व लोक अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर यूज किए हैं।
लोक प्राधिकारियों की भी लापरवाही
वहीं साइबर धोखाधड़ी होने पर कई बार लोक प्राधिकारियों की भी लापरवाही पाई गई है। वे बिना देखें व जांच किए अपनी मोहर व हस्ताक्षर कर देते हैं। ऐसे में ही एक जांच अधिकारी का कहना है कि साइबर धोखाधड़ी के केस में पाया गया कि एक विधायन ने आरोपी के एड्रेस में बदलाव करने के प्रमाण पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके जरिए आरोपी ने आसानी से अपने डेटाबेस पर अपने घर का पता आसानी से बदल लिया था। वहीं इस मामले की आगे जांच करने पर पाया गया कि उसी विधायन ने अपने दफ्तर के एक कर्मचारी को ऐसे प्रमाणपत्रों पर मोहर लगाने व हस्ताक्षर करने की स्वीकृत दी है।
मार्च 2022 में हुआ पर्दाफाश
बता दें, बीते साल मार्च में निरीक्षक खेमेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में दिल्ली पुलिस की साइबर थाने की जांच टीम ने एक ऐसे ही केस का पर्दाफाश किया था। इस जांच में खुलासा हुआ कि नाइजीरियाई के 2 नागरिक समेत 6 लोगों ने खुद को NRI बताया था। इस झूठ से उन्होंने दूल्हा बन युवतियों को ठगा था। वे इसतरह NRI बनकर युवतियों को अपने जाल में फंसाते थे। जांच में पाया गया कि आरोपियों ने इसके लिए एक डॉक्टर की मदद ली थी। बताया गया कि डॉक्टर ने सिर्फ 500 रुपए लेकर उनके पता बदलने के प्रमाणपत्र पर साइक कर दिए थे।
दिल्ली पुलिस के आईएफएसओ ने कहीं ये बात
वहीं इस पर बात करते हुए दिल्ली पुलिस के ‘इंटेलिजेंस फ्यूजन एंड स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस’ (आईएफएसओ) प्रशांत गौतम का कहना है कि साइबर आरोपी अपने घर का पता आसानी से चेंज कर लेते हैं। वहीं कुछ केस में तो वे अपने आधार डेटाबेस में कई बार एड्रेस बदल चुके हैं या बदलते रहते हैं। इसका फायदा उठाते हुए वे पीड़िता के खाते से पैसे हस्तांतरित करवाने के लिए विभिन्न बैंकों में नए खाते खुलवा लेते हैं।
पुलिस अधिकारी ने कहा इसके लिए दिल्ली हाई कोर्ट की लेनी पड़ती मदद
अधिकारियों का कहना है कि पुलिस के पास पूरा आधार डेटा न होने पर उन्हें आरोपी का पता लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट की मदद लेनी पड़ती है। वहीं इस कारण काम में देरी हो सकती है। जांचकर्ताओं का मानना है कि यूआईडीएआई की वेबसाइट पर अपलोड की गई लोगों की बदली हुई जानकारी को दोबारा से जांच करने का अभी तक कोई तरीका नजर नहीं आ रहा है।