Thursday, June 19, 2025
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Budget 2023: सरकार ने 2047 तक देश को ‘एनीमिया मुक्त’ करवाने का रखा लक्ष्य, जानिए क्या हैं ये बीमारी?

देश (TES): केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2023 का बजट पेश किया है। इस बजट में उन्होंने कई अहम मुद्दों को ध्यान में रखा। वहीं वित्त मंत्री ने एक खतरनाक बीमारी सिकल सैल एनीमिया के बारे में भी कहा। उन्होंने इस लाइलाज बीमारी को वर्ष 2047 तक देश से जड़ से खत्म करने का लक्ष्य रखा है।

बजट दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस बीमारी से पीड़ित आदिवासी क्षेत्रों में 40 वर्ष तक के करीब 7 करोड़ लोगों की स्क्रीनिंग भी होगी। बता दें, बीते 6 दशकों से ये बीमारी भारत के लोगों को अपना शिकार बना रही है। जनजातीय आबादी भी इस बीमारी की चपेट में आ रही है। चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल में इस गंभीर रोग के बारे में व इसकी भारत में स्थिति के बारे में बताते हैं…

सिकल सैल एनीमिया बीमारी

एक रिपोर्ट के अनुसार, ये खून की कमी से संबंधित एक बीमारी है। इस रोग में ब्लड सैल्स टूट जाते हैं या उनका साइज और शेप में बदलाव आने लगता है। इसके कारण खून की नसों में ब्लॉकेज होने लगती है। इस दौरान शरीर से रैड ब्लड सैल्स मर जाते हैं और व्यक्ति खून की कमी से जूझने लगता है। यह एक जैनेटिक बीमारी है जिसमें खून बनना बंद होने लगता है।

वहीं शरीर में खून की कमी होने के कारण ये बॉडी के कई पार्ट्स को डैमेज करने लगता है। इसके कारण पीड़ित की किडनी, तिल्ली और लिवर खराब होने का खतरा रहता है।

सिकल सैल एनीमिया बीमारी के लक्षण

इस बीमारी की चपेट में आने से मरीज में कई लक्षण दिखाई दे सकते हैं। इनमें से मुख्य है हर समय हड्डियों और मांसपेशियों में दर्द रहना। हाथ-पैरों में दर्द व सूजन आना। खून न बनने की परेशानी होना या शरीर में रक्त की कमी आने से खून चढ़ाने की नौबत आना।

लाइलाज है बीमारी

. एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस लाइलाज बीमारी से पूरी तरह बचा नहीं जा सकता हैं। मगर खून की जांच करने से इस गंभीर बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
. फॉलिक एसिड जैसी दवाओं का सेवन करने से इसके लक्षणों को कुछ कंट्रोल कर सकते हैं।
. इससे बचने के लिए स्टैम सैल या बोन मैरो ट्रांसप्लांट भी किया जा सकता है।

मिली जानकारी के अनुसार, सिकल सैल एनीमिया से होने वाली मौतों की वजह संक्रमण, बार-बार दर्द उठना, एक्यूट चैस्ट सिंड्रोम, स्ट्रोक आदि हो सकते हैं। एक्सपर्ट अनुसार, इससे पीड़ित व्यक्ति की अचानक मौत होने का खतरा रहता है। पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक साल 2015-2016 के बीच 58.4% बच्चे और 53 % महिलाएं इस गंभीर बीमारी का शिकार हो गए थे।

 

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